जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥ अन्त काल रघुबर पुर जाई । कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥ हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । जम कुबेर दिकपाल जहां ते। कवि कोबिद कहि सके कहां ते॥ और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेई सर्व सुख करई॥ You could take a look at https://vashikaranspecialist88877.blogmazing.com/34661199/hanuman-mantra-no-further-a-mystery